रविवार, 21 सितंबर 2008

सफदर समूह का काम

अलोक
सफदर अपने तीन साल के दौरान कला और संस्कृति को बढावा देने के लिए तत्पर रहा है। विगत 2006 से सफदर ने रांची के कई गांवो में लगातार कला और संस्कृति के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें सबसे पहले रांची के निकट सिदरौल गांव में गांव के बच्चों एवं युवा युवतियों के द्वारा पेटिंग के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम 2006 में किया इस साल बुडमू ब्लाॅक के बाडे गांव में पेंटिग और संगीत का कार्य क्रम किया गया। साथ ही जम’ोदपूर में जाकिर हुसैन इस्टीच्यूट जम’ोदपूर में भारत के आजादी के 60 साल में छात्रा की नजर में भारत को कैसे देखते इस पर पेंटिग कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें लगभग 500 लोगो को कला से जोड़ने का काम किया गया। 2007 के मार्च में बुण्डू के पान सकम गांव गांव के बच्चों के साथ संगीत और पेंटिग का कार्यक्रम चलाया गया गया। इसी साल कुटे गांव जगरनाथ पूर में लगभग 6 महिने तक गांव के बच्चों के साथ गीत संगीत और पेंटिग के लिए स्कूल का आयोजन किया गया जिसमे गांव के बच्चे के साथ युवा समूह एंव उनके माता पिता सभी भाग लिए साथ ही बेडो ब्लाक के कपरिया गांव में 2साल तक परम्परागत कहानी और गीत लघु कथा पर क्रार्याक्रम चलाया गया जिसमे 15 गांव के लोग भाग लेते रहे। 2007 में गुमला के पलायन के लेकर एकदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया इस कार्यक्रम में सी एल डब्लू के ’िावानी भारद्वाज एवं स्वतंत्र पत्रकार सुजाता ने इस कार्यक्रम में भाग ली। जिसका विषय था पलायन करने से संस्कृति पर प्रभाव जिसमे गुमला के जिला से महिला और पुरूषों ने भाग लिया।2008 में सफदर ने नरेगा कानून पर एक ’ाोध किया। ’ाोध का मूल कारण है बढ़ती बेरोजगारी और पलायन पर महिलाओं भूमिका जिसमें गांव के कई महिला समूह ने भाग लिया और बताया कि नरेगा के तहत महिलाओं के साथ भेद भाव किया जा रहा है। महिलाएं काम पाना चाहती है किन्तु काम के रूप में सिर्फ पुरूषों को जोड़ा जाता रहा है। सफदर सचिव अलोका एच बी रोड़ थड़पखना रांची 843001