शुक्रवार, 2 मई 2008

स्त्रियों ने भी रची हैं वैदिक ऋचाएं - कुमार मुकुल

वेदों के पुनरपाठ की इस कड़ी में आप देखेंगे कि जिस स्त्री के वेद पढ़ने पर ही प्रतिबंध था, उसके कई हिस्सों की रचयिता वे खुद हैं।वेदों को लेकर सबसे बड़ा वितंडा यह है कि यह अपौरुषेय है, ब्रह्मा की लकीर है, वेदों का अध्‍ययन करने पर यह भ्रम सबसे पहले दूर होता है। वेद की हर ऋचा को रचनेवाले ऋषि का नाम उसमें दर्ज है और ऋषि एक-दो नहीं पच्चीसों हैं, जिनमें दर्जनों नारियां है। अब कोई एक लेखक हो तो उसका नाम लिखा जाए वेद के लेखक के रूप में, बहुत सारे लेखक होने के कारण ही सबका नाम उनकी रचना के साथ दे दिया गया है।वेद ब्रह्मा की लकीर भी नहीं हैं, इस बारे में तो हमारे पुराने शास्त्रों में ही कई कथन मिल जाएंगे। परशर-माध्‍वीय में कहा गया हैµश्रुतिश्च शौचमाचार: प्रतिकालं विमिध्‍यते।नानाधर्मा: प्रावर्तन्ते मानवानां युगे युगे।।मतलब, हर युग में मनुष्यों की श्रुति (वेद), आचार, धर्म आदि बदलते रहते हैं। अब सवाल उठेगा कि वेदों की तब क्या प्रासंगिकता है। जवाब में हम सिर ऊंचा कर कह सकते हैं कि वेद हमारे आदि पुरुषों-स्त्रियों के प्रथमानुभूत सुन्दर विचार हैं, पर वे अन्तिम विचार नहीं हैं। दरअसल, वेद उस समय की उपज हैं, जब विकास क्रम में लगातार नई-नई चीजों की खोज हो रही थी।उनमें जो भी चीजें थीं, जो हमें कुछ देती थीं, वे आगे देवता कहलाने लगीं। ऐसा नहीं था कि केवल लाभदायक चीजें ही देवता कहलाईं। जो भय त्रास देती थीं, वे भी देवता कहलाई, जरा अपने कुछ प्रचलित वैदिक देवताओं के नाम देखें-जंगल, असुर, पशु, अप्सरा, बाघ, बैल, गर्भ, खांसी, योनि, पत्थर, दु:स्वप्न, यक्ष्मा (टीवी), हिरण, भात, पीपल आदि।अब कुछ अप्रचलित ऋषियों के नाम देखें जिन्होंने वैदिक ऋचाए रचीं-मानव, राम, नर, कुत्स, सुतम्भरा, अपाला, सूर्या सावित्री, श्रद्धा कामायनी, यमी, शची पौलमी, ऊर्वशी आदि। वेदों की रचना में स्त्रियों की महत्‍वपूर्ण भूमिका है, यह उपरोक्त स्त्री ऋषियों की ऋचाओं को पढ़कर जाना जा सकता है।मजेदार बात यह है कि स्त्री ऋषियों ने कई ऐसी ऋचाएं रची हैं जिनमें उन्होंने खुद को ही सर्वशक्तिमान कहा है। कहीं यह स्त्रियों की मजबूत स्थिति ही तो नहीं है कि आगे षड्यंत्रकारी पुरुष वैदिक भाष्यकारों ने उनको वेद पढ़ने की ही मनाही कर दी, जिसकी आज तक वकालत की जाती है। जो स्त्रियां¡ खुद वेद रच सकती हैं, उन्हें उनका पाठ करने से कोई कैसे रोक सकता है? वेद को पढ़ें, तो वे अपने समय की सहज रचना मालूम पड़ती हैं। बातें वहां बड़ी सीधी हैं। उनको समझने के लिए किसी प्रकाण्डता की जरूरत नहीं है, जरूरत उनकी अनुवाद के साथ उपलब्धता की है।वेदों में प्रकृति को लेकर सहज उल्लास है, प्रकृति आज भी हमें उसी तरह उल्ल्सित करती है। वहां छोटी-छोटी कामनाओं के लिए आदमी इन्द्र से याचना करता है। आज तक वह याचक कृति हमारे लिए अभिशाप बनी चली आ रही है। छोटे-छोटे डरों से भयाक्रान्त वैदिक मनुष्य ऋचाओं में उन्हें देवता पुकारता, उनसे मुक्ति की मांग करता है।वह विकास का आरिम्भक दौर था और जानने की प्रक्रिया में यह एक सहज क्रिया थी, विशिष्ट नहीं। जैसे ऋग्वेद के दसवें खंड के 184 वें सूक्त में ऋषि त्वष्टा लिंगोक्ता : देव से प्रार्थना करते हैं-विष्णुयोनि कल्पयतु, त्वष्टा रुपाणि पिंशतु। मतलब, देवता इस स्त्री को प्रजनन योग्य बनावें। आज इस काम के लिए लोग डॉक्टर के पास जाते हैं।क्या उन्हें आज भी किसी ऋषि की खोज करनी चाहिए? इसी तरह सूक्त 165 में कहा गया है, `इस अमंगलकारी कबूतर को हम पूजते हैं। हे विश्वदेव, इसे यहां से दूर करें।´ क्या आज भी हमें कबूतर को अशुभ मान उनसे डरना चाहिए। आज कबूतर हमारे मिन्दरों में छाए रहते हैं और कोई उन्हें अशुभ नहीं मानता है। मतलब वेदों में सारा अटल ब्रह्मवाक्य ही नहीं है।

1 टिप्पणी:

Kumar Mukul ने कहा…

http://www.rajneesh-mangla.de/unicode.php

http://uninagari.kaulonline.com/remington.htm

http://bhashaindia.com/Downloadsv2/Category.aspx?ID=1

Indic IME 1 (Hindi)
Hindi Indic IME 1 Version 5.1
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उपर वाले में आप क्रुतिदेव आदि में कंपोज कर उसे उसके बाक्‍स में डाल बदलें क्लिक करेंगी तो वह यूनिस्क्रिप्‍ट में बदल जाएगाा और उसे आप ब्‍लाग में डाल सकती हें

बीच वाले में आप रेमिंगटन में टाइप करेंगी तो उसे बलाग पर पेस्‍ट कर सकती हें वह ब्‍लाग ले लेगा

नीचे वाले को डाउनलोड कर उससे हिन्‍दी में लिखा जाता हे पर इसमें वहां कोई जानने वाला मदद करे तो संभव हे मुझ ठीक से आता नहीं है किसी ने कर दिया थाा यूं खुद कर के देखिए इससे पूराी तरह हिन्‍दी में लिखा जा सकता हे