गुरुवार, 31 जनवरी 2008

मुस्लिम महिला ने पढ़ाई नमाज़

क़रीब बराबर संख्या में महिलाओं और पुरूषों ने नमाज़ पढ़ी अमरीका में एक मुस्लिम महिला प्रोफ़ेसर ने शुक्रवार को इतिहास रच दिया जब उन्होंने लगभग 100 लोगों को नमाज़ पढ़ाई। अमीना वदूद ऐसा करने वाली पहली मुसलमान महिला हैं। उनसे पहले केवल पुरूष ही इमाम हुआ करते थे। अमीना का कहना है कि उन्होंने ये क़दम इसलिए उठाया है क्योंकि उनका मानना है कि इस्लामी दुनिया में महिलाओं को भी हर मामले में पुरूषों के बराबर के अधिकार होने चाहिए. ने कहा,"इस्लाम में औरतों और मर्दों के बीच समानता का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है और मुसलमानों ने दुर्भाग्य से इतिहास का बहुत ही संकीर्ण दृष्टिकोण से अर्थ निकाला है". अमरीका के वर्जीनिया राज्य में इस्लामी अध्ययन विभाग की प्रोफ़ेसर हैं.मगर उनके इस प्रयास की राह में कई अड़चनें भी आईं और कई लोगों ने इसका विरोध भी किया है.गिरिजाघर में मुसलमानों ने दुर्भाग्य से इतिहास का बहुत ही संकीर्ण दृष्टिकोण से अर्थ निकाला है अमीना इस विशेष नमाज़ को एक गिरिजाघर में आयोजित करवाना पड़ा क्योंकि कई मस्जिदों ने इसके लिए जगह देने से मना कर दिया। हारकर आयोजकों ने इसके लिए जब एक भारतीय कला प्रदर्शनी केंद्र को चुना तो उस जगह को भी बम से उड़ा देने की धमकी दी गई। आख़िर में न्यूयॉर्क में मैनहटन के सेंट जॉन द डिवाइन चर्च में नमाज़ पढ़ी गई। नमाज़ के लिए लगभग 100 लोग इकट्ठा हुए जिनमें लगभग 40 पुरूष और कुछ बच्चे भी थे। विरोध-समर्थन अगर कोई महिला विद्वान हो या कोई पुरूष विद्वान हो, वे अगर नमाज़ पढ़ाना चाहते हैं तो पढ़ाएँ,ये तो बस इबादत के बारे में है युसूफ़ अहमद
प्रोफ़ेसर वदूद के नमाज़ पढ़ाने का समर्थन तो हुआ है मगर अधिकतर मुसलमानों ने इसका विरोध किया है.समर्थकों का कहना है कि इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है जिसमें किसी महिला पर महिलाओं और पुरुषों को नमाज़ पढ़ाने पर पाबंदी हो.नमाज़ पढ़ने के बाद बाहर निकले पाकिस्तानी मूल के युवक युसूफ़ अहमद ने कहा,"मुझे तो कोई फ़र्क़ नहीं लगा, अगर कोई महिला विद्वान हो या कोई पुरूष विद्वान हो, वे अगर नमाज़ पढ़ाना चाहते हैं तो पढ़ाएँ,ये तो बस इबादत के बारे में है".
जेबईसाईयों में महिला पादरी नहीं बन सकतीं, वैसे ही कोई मुस्लिम महिला भी इमाम नहीं बन सकती

नुसरत ahiin विरोध करनेवालों में से कई तो गिरिजाघर के बाहर भी जमा हुए और प्रदर्शन किया.
एक युवती नुसरत ने इसे इस्लाम के ख़िलाफ़ बताया।
उन्होंने कहा,"इस्लाम में किसी महिला को पेश इमाम बनाने की इजाज़त नहीं है. 1400 साल से इस्लाम में पुरूष ही नमाज़ पढ़ा रहे हैं तो इसमें बदलाव क्यों हो. जैसे ईसाईयों में महिला पादरी नहीं बन सकतीं, वैसे ही कोई मुस्लिम महिला भी इमाम नहीं बन सकती".
वैसे इस पूरे आयोजन में दो घंटे लगे जिसके बीच पूरे गिरिजाघर को पुलिस ने घेरे में ले रखा था और ज़बरदस्त चौकसी बरती जा रही थी.
यहाँ तक कि अमीना वदूद स्वयँ नमाज़ पढ़ने के बाद गुप-चुप तरीक़े से बाहर चली गईं.

'आत्मदाह कर रही हैं अफ़ग़ान महिलाएँ'

हाल में मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने महिलाओं की बुरी दशा पर रिपोर्ट जारी की थी
अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय ग़ैरसरकारी संगठनों के अनुसार देश में महिलाओं के आत्महत्या करने के मामले बढ़ रहे हैं। उनका कहना है कि दिन-प्रतिदिन यातनाएँ सहने के कारण और ज़बरदस्ती शादी करवाए जाने से तंग आकर महिलाएँ आत्महत्या कर रही हैं। इन संगठनों के अनुसार पूरी तरह आँकड़े जुटाना और स्थिति का आकलन करना मुश्किल है लेकिन केवल राजधानी काबुल में ही ख़ुद को आग लगाकर आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या पिछले साल के मुकाबले में दोगुना हो गई है. काबुल में इस साल आत्मदाह के 36 मामले सामने आए हैं. श्चिमी अफ़ग़ानिस्तान के हेरात शहर में तो हर रोज़ इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं. ग़ैरसरकारी संगठन मेडिका मॉंडिएल के प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया, "ये मामला युवाओं से संबंधित है और आत्मदाह करने वाली अधिकतर लड़कियाँ नौ से 40 साल में हैं. वे ऐसा इसलिए कर रही हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके लिए अपनी समस्याओं से बाहर निकलने का और कोई रास्ता नहीं है." मेडिका मॉंडिएल के प्रवक्ता का कहना था कि हो सकता है कि ये ईरान के प्रभाव में हो रहा हो क्योंकि वहाँ ये प्रथा आम है. हाल में मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान को सत्ता से बेदख़ल करने के बाद से महिलाओं की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है.
साभार दीन्क्क भाष्कर

मंगलवार, 29 जनवरी 2008

फ्लोरिडा प्राइमरी में हिलेरी की जीत


एजेंसी
वॉशिंग्टन. अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने फ्लोरिडा प्राइमरी में जीत हासिल की है। माना जा रहा है कि 5 फरवरी को होने वाले सुपर चुनाव अभियान के लिए यह जीत हिलेरी के लिए महत्वपूर्ण है। यहां निकटतम प्रतिद्वंद्वी बैरेक ओबामा को आसानी से हरा दिया। हिलेरी को 48 प्रतिशत मत मिले जबकि ओबामा 30 प्रतिशत। तीसरे नंबर पर रहे पूर्व सीनेटर जॉन एडवर्ड्स को जिन्हें 14 प्रतिशत वोट मिले। हिलेरी को सीएनएन ने विजयी प्रांेजेक्ट किया है क्योंकि यह परिणाम वोटों की गिनती के दौरान आए हैं।

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के लिए चल रहीं चयन प्रक्रिया में डेमोक्रेटिक पार्टी की सीनेटर हिलेरी क्लिंटन ने नेवादा में अपने नजदीकी विरोधी उम्मीदवार बराक ओबामा को हरा दिया है।
गौरतलब है कि आयोवा में ओबामा के खिलाफ कमजोर पड़ी हिलेरी ने अपने अभियान में तेजी लाई जिसका परिणाम सबसे पहले न्यूहैपशर में देखने को मिला था और अब एक बार फिर नेवादा में हिलेरी को मिली जीत उनकें लिए खास महत्व रखती है । नेवादा में श्रमिकों का समर्थन ओबामा के साथ था लेकिन हिलेरी क्लिंटन को पारम्परिक डेमोक्रेट उम्मीदवारों का समर्थन मिला जिससे वो यहां जीतने में सफल रही हैं। डेमोक्रेटिक पाट्री के एक अन्य उम्मीदवार जॉल एडवर्डस पांच प्रतिशत वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहें।


Denik bhashkar

बेनजीर हत्याकांड: हत्यारे की पहचान हुई

एजेंसी
इस्लामाबाद. बेनजीर की हत्या के आरोप में गिरफ्तार 15 वर्षीय एतिजाज शाह ने बेनजीर को मारने वाले आत्मघाती हत्यारे की पहचान कर ली है। हत्यारे का विवरण देते हुए पुलिस अधिकारी ने बताया कि हत्यारे के नाम बिलाल था। वह दक्षिण वाजिरिस्तान के आदिवासी इलाके का रहने वाला था। 15 वर्षीय एतिजाज शाह ने पूछताछ के दौरान बताया कि वह तालिबान कंमाडर बेतुल्ला मेहसुद द्वारा भेजी गई 5 सदस्यों की टीम का सदस्य था। इन लोगों को बेनजीर की हत्या का जिम्मा सौंपा गया था। अधिकारियों ने बताया कि एतिजाज शाह ने यह भी दावा किया है कि वो बेतुल्ला से मिला करता था, लेकिन अभी इस बात की पुष्टि नहीं हुई है।

महिलाओं को आरक्षण देने वाली पहली पार्टी भाजपा


एजेंसी
नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी महिलाओं को संगठन में 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाली पहली राजनीतिक पार्टी बन गई है। हालांकि भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड में महिलाओं को आरक्षण देने का फैसला नहीं किया है। इस प्रस्ताव की घोषणा करते हुए भाजपा महासचिव सुषमा स्वराज ने कहा कि पार्टी के संविधान में सात संशोधन किए जाने के बाद महिलाओं को संगठन की स्थानीय इकाई से लेकर राज्य और केंद्रीय समिति में भी 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। इस आरक्षण के बावजूद समितियों के अध्यक्ष पद के लिए कोई आरक्षण नहीं है। संसदीय बोर्ड में आरक्षण को लेकर स्वराज ने कहा कि इस मामले में पार्टी में एक राय नहीं बन सकी लेकिन आने वाले समय में बोर्ड में भी महिलाओं को आरक्षण दिया जा सकता है। स्वराज ने यह भी साफ किया कि यह आरक्षण तब लागू नहीं होगा जब चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को टिकट देने का समय आएगा। इस प्रस्ताव की घोषणा पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने की और पार्टी के राष्ट्रीय परिषद सदस्यों ने इसे एकमत से पास कर दिया।

दो बहनों ने एक लड़के से शादी रचाई


29 जनवरी २००८ सर्विसपटना। एक भविष्यवक्ता की भविष्यवाणी पर पिता ने अपनी दो बेटियों की शादी एक लड़के से कर दी। पटना के पास फुरवारी शरीफ में स्थित शिव मंदिर में दूल्हा शैलेंद्र कुमार उर्फ पिंटू ने दो बहनों आरती कुमारी और पूजा कुमारी से शादी रचाई।

इंडो-एशियन न्यूज

गुरुवार, 24 जनवरी 2008

रिश्तों की परिभाषा और अधिकार

विमला patil
दृष्टिकोण. हिंदू उत्तराधिकार कानून में परिवार और शादी पर गहरा जोर दिया गया है। शादी से बनने वाले परिवार और संयुक्त परिवार को अच्छे से परिभाषित करते हुए इसके दायरे में आने वाले सदस्यों की संपत्ति और देखभाल के अधिकार बांटे गए हैं। 1956 में हिंदू उत्तराधिकार कानून के पारित होने तक महिलाओं का पैतृक संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं होता था, न ही वे उत्तराधिकारी मानी जाती थीं।
उनकी कुल जमा संपत्ति वह 'स्त्रीधन' होता था, जो उन्हें शादी के दौरान मायके से दहेज के रूप में मिलता था। इसमें वह उपहार भी शामिल होते थे, जो उन्हें समय-समय पर परिजन त्योहारों या विभिन्न अवसरों पर दिया करते थे। तलाक या अलगाव की स्थिति में उन्हें वही गुजाराभत्ता मिलता था जो अदालत तय करती थी या परिवार अदालत के बाहर सदाशयता दिखाते हुए निर्धारित कर देते थे।
इस स्थिति में 1956 के हिंदू उत्तराधिकार कानून ने उनकी स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव लाने का काम किया। लड़कियों को पैतृक संपत्ति में वारिस माना गया। इसके बाद 2005 में इसी कानून ने संपत्ति के बंटवारे में भी बेटों के समान उन्हें समान अधिकार दे दिया। अभी तक संपत्ति से जुड़े सभी कानून पति-पत्नी के वैधानिक रिश्ते और उनसे उत्पन्न होने वाली संतान की परिभाषा के भीतर ही तय हो रहे थे।
ऐसे में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अरिजीत पसायत वाली पीठ ने इस कानून के तहत 'लिव इन' संबंधों से उत्पन्न संतान को भी पिता की संपत्ति में समान अधिकार दे एक नया आयाम दे दिया है। हमारे परंपरागत समाज पर इस निर्णय का क्या प्रभाव पड़ेगा यह देखने वाली बात होगी। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ की यह व्यवस्था उन सभी दंपतियों पर लागू होती है, जिन्होंने शादी नहीं की, लेकिन वे पति-पत्नी की तरह लंबे समय से साथ-साथ रह रहे हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि पीठ ने 'लिव इन' संबंधों से उत्पन्न बच्चों की निदरेषता व मासूमियत के आधार पर यह व्यवस्था दी है। पीठ को लगा होगा कि ऐसे संबंधों से उपजे बच्चों का अपने अभिभावकों के 'बगैर शादी साथ-साथ रहने के' निर्णय में कोई दखल नहीं होता है। फिर वे इसकी सजा क्यों भुगतें। इस क्रम में अभी यह देखना बाकी है कि इस निर्णय का वैध शादी से उपजे बच्चे और पत्नी पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
जैसा सभी जानते हैं कि आमतौर पर कोई भी कानून संसद में पास होने के बाद ही अस्तित्व में आता है। इसी तरह कई कानून अदालती निर्णय से भी समय-समय पर बनते हैं। संपत्ति और परिवार से जुड़े कानून इसी दूसरे वर्ग में आते हैं। किस तरह कोई शादी वैधानिक मानी जाएगी, किस तरह पति-पत्नी का दर्जा और अधिकार तय होंगे और किस तरह बच्चे या परिवार के अन्य सदस्य संपत्ति के अधिकारी बनेंगे सरीखे प्रश्न न सिर्फ संसद द्वारा पारित कानून से परिभाषित होते हैं, बल्कि इनमें न्यायिक स्तर पर सामूहिक बुद्धिमत्ता और अनुभव भी शामिल होता है।
सचाई तो यह है कि न्यायाधीश अरिजीत पसायत ने स्वयं स्वीकार किया है कि 'लिव इन' संबंधों से उत्पन्न बच्चे के संपत्ति के अधिकार से न सिर्फ भविष्य के निर्णय प्रभावित होंगे, बल्कि लंबे समय तक इन पर बहस भी चलेगी। प्रथम दृष्टया तो इससे मासूम बच्चे को आर्थिक सहायता ही प्राप्त होगी, जिसकी कोई गलती नहीं है। समाज के कुछ लोगों का मानना है कि यह वास्तव में एक सकारात्मक कदम है।
खासकर यह देखते हुए कि हम अब 21 वीं सदी में रह रहे हैं, जहां स्त्री-पुरुष के बीच नित नए संबंध सामने आ रहे हैं। लंबे समय से लिव इन संबंधों को कानूनन शादी की तरह देखने और उसे वही अधिकार देने के लिहाज से यह एक अच्छा कदम है। हालांकि एक प्रश्न यहां भी सिर उठाता है कि एक रात के संबंध से उपजी संतान की क्या हैसियत होगी? वे भी मासूम होते हैं और उन्हें भी नहीं मालूम होगा कि आखिर उसे जन्म क्यों दिया गया, खासकर जब उसके माता-पिता शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहते थे? उनकी मां भी पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्से की मांग कर सकती हैं।
ऐसे में भ्रम की स्थिति आ सकती है कि आखिर लिव इन संबंधों के दौरान जन्मे बच्चे को कितनी अवधि के बाद पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है? पैतृक संपत्ति में हिस्सा हासिल करने के लिए अभिभावकों को कितने समय तक साथ-साथ रहना जरूरी होगा? अलग-अलग जाति या धर्म के होने पर क्या स्थिति होगी? हालिया अदालती निर्णय के आलोक में ये प्रश्न स्वाभाविक तौर पर सिर उठाते हैं। संभव है कि इनके जवाब आते वक्त के साथ ही मिलें।
फिर भी समान नागरिक संहिता के अभाव में और कई निजी कानूनों के लागू होने के कारण बहुत विसंगतियां हैं। यही वजह है कि परस्पर विरोधाभासी प्रतीत होने वाले निर्णय तर्क-कुतर्क के केंद्र बन जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय का विरोध करने वाले खेमे का तर्क है कि यह निर्णय शादी रूपी संस्था के अस्तित्व को ही चुनौती देता है। सदियों से प्रत्येक समाज में स्त्री-पुरुष के मिलन को शादी के पवित्र बंधन से ही निरूपित किया गया है।
हमारे देश में एक लड़की जब शादी करती है तो वह सिर्फ पत्नी या मां ही नहीं बनती, बल्कि उस परिवार की एक सदस्य हो जाती है। उसे शादी के साथ ही ढेर सारे अधिकार और दर्जे मिलते हैं। जरूरी नहीं कि उसे प्राप्त होने वाला दर्जा आर्थिक ही हो। वह अपने पति और उसके परिवार के साथ धार्मिक और सामाजिक क्रियाकलापों में शादी और उसके परिणामस्वरूप मिले पत्नी के दर्जे के कारण ही भागीदारी कर पाती है।
अगर ऐसा न होता तो फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी के साथ आने वाली उनकी गर्लफ्रेंड कार्ला ब्रूनी के आधिकारिक दर्जे को लेकर इतनी हाय-तौबा नहीं मचती। यही भारत की सामाजिक मान्यता है। ऐसे में यह निर्णय शादी की पवित्रता को आघात पहुंचाने वाला है। यह अलग बात है कि महानगरों में रहने वाले युवा वर्ग को सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय सामाजिक बदलाव की दिशा में उठा एक कदम प्रतीत हो रहा है। इससे लिव इन संबंधों में रह रहे दंपती भी अब गर्व के साथ सिर उठाकर चल सकते हैं। उन्हें अब इस तरह के संबंधों को लेकर कोई शर्म नहीं आएगी। हालांकि संयुक्त या बड़े परिवारों में लिव इन संबंधों से उपजे बच्चे और उसके संपत्ति के अधिकार को लेकर खासी असुविधा महसूस की जा सकती है। विधि विशेषज्ञों का भी मानना है कि लिव इन संबंधों में पत्नी की तरह रहने वाली महिला को पुरुष की संपत्ति में कोई अधिकार हासिल नहीं है। वह यहां भी पुरुष की इच्छा की ही पात्र रहेगी।
-लेखिका फेमिना की पूर्व संपादक हैं।

भारतीयों का ब्रिटेन में सम्मान

एजेंसी लंदन.
शानदार गायकी के दम पर पंजाबियों को नचाने वाले मलकीत सिंह ने अंग्रेजों का भी दिल जीत लिया है। मशहूर पंजाबी गायक मलकीत सिंह को क्वीन मैंबर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर मैडल से सम्मानित करने जा रही हैं। मलकीत सिंह क्वीन की प्रतिष्ठित ऑनर्स लिस्ट में शामिल होने वाले पहले पंजाबी गायक हैं। इस सम्मान से उत्साहित मलकीत सिंह ने कहा कि मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्वीन से मिलने पर मैं उन्हें क्या कहूंगा, मैं पूरे जोर से बल्ले-बल्ले या चक्क दे फट्टे कहकर उनका अभिवादन करना चाहता हूं। मैंने अपने म्यूजिक पर बहुत मेहनत की है, लेकिन मेरा संगीत सफर असल में ब्रिटेन से शुरू हुआ। जालंधर के हुसैनीपुरा में जन्मे मलकीत सिंह 1984 में ब्रिटेन गए थे।
मैडल के अन्य विजेता
नाम किस क्षेत्र के लिए
सुभाष आनंद हायर एजूकेशन
किरण बाली कम्युनिटी रिलेशंस
देबजानी चटर्जी लेखन
गुरबचन ढींढसा कम्युनिटी रिलेशंस
तलत जावेद एजूकेशन
सुखविंदर जोहल आर्ट्स
प्रदीप बलबीर मेडिसिन
आरती कुमार हायर एजूकेशन
अश्विन शाह हैल्थकेयर
अमजीत तलवार म्यूजिक इंडस्ट्री
राजेंदर रतन डेंटिस्ट्री

दुबई में भारतीय कामगार मृत

दुबई. दुबई में एक 54 वर्षीय भारतीय मजदूर अपने कमरे में मृत पाया गया।
पुलिस ने बताया कि चंद्रन पिल्लै जीबेल अलि स्थिति लेवर कैंप में अपने कमर में पंखे से लटका पाया गया। उन्होंने कहा कि आशंका है कि पिल्लै कमरे में खुद को बंद करने के बाद फांसी लगाई है। मृत्यु के कारणों की प्रारंभिक जांच दुबई पुलिस कर रही है।
पिल्लै के साथ रहने वाले साथी ने बताया कि शुक्रवार की शाम को दो अन्य साथियों के साथ हमलोगों ने खाना था और उस समय वे एकदम ठीकठाक लग रहे थे।
मीडिया के अनुसार पिल्लै 12 साल पहले कंपनी से जुड़े थे और वे एक हंसमुख व्यक्ति थे।

संभव है लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप

रिलेशनशिप
वर्तमान में कामकाजी जोड़े के सामने काम के सिलसिले में एक-दूसरे से लंबी दूरी की स्थिति भी बन जाती है। ऐसे में अपने रिश्तों को मजबूती कैसे दी जाए?
स्टेप 1- लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप्स में सबसे पहले हमें एक-दूसरे को लेकर अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं पर क्लीयर माइंड रखना चाहिए। लेकिन इसके साथ ही गाइडलाइंस तय करना भी बहुत जरूरी हैं। यह सारी बातें इस पर भी लागू करती हैं कि आप दोनों अपनी रिलेशनशिप को लेकर क्या सोच रखते हैं, या फिर भविष्य में इसे किस मुकाम तक ले जाना चाहते हैं। दूर रहते हुए आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि आप में से किसी एक को अपना शहर छोड़कर दूसरे के पास आना पड़ेगा।
स्टेप 2- दूर से रिश्ते निभाने वालों को यह मालूम होना चाहिए कि अपने पार्टनर से कब, किस जगह और कैसे कांटेक्ट करना है। ऐसा इसलिए क्योंकि कम्यूनिकेशन के बगैर आपको रिश्ते का कोई बेस नहीं है।
स्टेप 3- ई-मेल का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें। तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ने के बाद यह बातचीत का सबसे अच्छा और सस्ता माध्यम बनकर सामने आया है। इसका खर्चा भी फोन बिल की तरह नहीं होगा। यह आपको लंबी और ज्यादा बातें लिखने की आजादी भी देता है। सिर्फ यही नहीं बोलते वक्त आपने जो बोला वो मुंह से निकल जाता है। लेकिन इसमें आपके पास सोचने का मौका भी होता है। साथ ही इस सुविधा से आपकी बात मनचाही जगह पर घंटो की जगह मिनटों में पहुंचती है।
स्टेप 4- इंस्टेंट मेसेजिंग सर्विस जिसे आम भाषा में चैटिंग कहा जाता है भी आप जैसे लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती है। इससे आप रिएलिटी में कम्यूनिकेट करने का लुत्फ उठा सकते हैं।
स्टेप 5- लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप में इंवेस्टमेंट भी बराबर का होना चाहिए। इसमें बातचीत के अलावा ट्रेवलिंग का खर्च भी शामिल है। चूंकि यह रिश्ता दूर बैठकर चल रहा है इसलिए कोशिश करें कि किसी पर भी अतिरिक्त फायनेंशियल भार न आए।
स्टेप 6- जब आप हकीकत में एक साथ हों तब भी एक-दूसरे के साथ को सराहें और अच्छा समय गुजारने की कोशिश करें। ध्यान रहे कि ओवर शिडच्यूलिंग न हो।
sabhar wama

तलाक से पर्यावरण को भी नुकसान

भास्कर नेटवर्क
नई दिल्ली. किसी भी पुरुष या महिला के लिए तलाक एक जिंदगी के अंत जैसा ही है। तलाक, इन तीन शब्दों से एक परिवार का पूरा सुख-चैन, खुशियां, प्यार और विश्वास टूट जाता है। विदेशों में भले ही तलाक के मामलों को गंभीरता से न लिया जाए, लेकिन भारत में यह एक गंभीर मसला है। तलाक के मामलों में दिनोंदिन हो रही वृद्धि ने परिवार कल्याण के लिए काम करने वालों की नींद उड़ा दी है। अब हाल ही में एक रिसर्च में सामने आया है कि तलाक से पर्यावरण को भी खतरा पहुंचता है। कैसे होता है पर्यावरण को नुकसानवैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया कि ऐसे मामलों में पर्यावरण को भी नुकसान पहुंच रहा है। शोधकर्ताओं के अनुसार अलग-अलग घर होने से बिजली के बिल में 53 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि पानी का उपयोग 42 प्रतिशत तक बढ़ गया है। यह सर्वे 12 देशों में किया गया है। अकेले अमेरिका में 2005 में तलाक के बाद घरों में 73 अरब किलोवॉट बिजली अधिक खर्च हुई है। यह बिजली ब्रिटेन में खर्च होने वाली बिजली की कुल खपत के पांचवे हिस्से के बराबर है। अमेरिका में एक-दूसरे से अलग हुए कपल लगभग 3.85 करोड़ कमरों का उपयोग करते हैं।
आंकड़े कहते हैंआंकड़ों की मानें तो तलाकशुदा दंपति हर मामले में दोगुना खर्च करते हैं। मसलन परिवार बंटने से प्रोडक्ट में 38 प्रतिशत, पैकेजिंग में 42 प्रतिशत, बिजली में में 55 प्रतिशत और गैस में 61 प्रतिशत तक की खपत अधिक होती है। इसके साथ ही जो लोग अकेले रहते हैं वो प्रतिवर्ष डेढ़ टन कचरा निकालते हैं। यह कचरा चार परिवारों के कचरे के बराबर है। इस तरह बढ़ती है प्रॉपर्टीमिशीगन यूनिवर्सिटी के जियानगो लियु ने कहा कि अलग हुए दंपति को रहने के लिए अलग-अलग घर की जरूरत होती है। इस लिहाज से एक घर दो घरों में बंट जाता है। इस शोध की रिपोर्ट प्रोसीडिंग ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुई है। एक अनुमान के मुताबिक शादी के बाद अलग हुए दंपती ज्यादा प्रॉपर्टी खरीदते हैं। रोचक कारणखर्राटे लेना, खाने-पीने की आदतें, ड्रेस सेंस, एक-दूसरे पर हावी होने की कोशिश करना आदि। बढ़ गई अतिरिक्त कमरों की संख्या लियु ने इस रिसर्च में पाया कि पिछले तीन दशकों में अमेरिका में तलाक के बाद अलग रहने वाले कपल्स के लिए अलग-अलग रूम का कल्चर बढ़ा है। इसके चलते वहां 3.85 करोड़ अतिरिक्त कमरे बढ़ गए हैं। इस पर एन्वायर्नमेंट, डेवलपमेंट एंड सस्टेन जर्नल में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले व्यक्ति का अलग रहना भी एक तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। कुछ और तथ्यदिल्ली की जिला अदालत में तलाक के लिए हर दिन कम से कम 40 आवेदन आते हैं। हैदराबाद और सिकंदराबाद में यह संख्या 100 से ऊपर पहुंच जाता है। पिछले कुछ सालों में इस संख्या में 15 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। चेन्नई के तीन फैमिली कोर्ट में इस समय तलाक के 3000 मामले चल रहे हैं। गत वर्ष इस अदालत ने तलाक के 1500 मामलों का सफलतापूर्वक निराकरण किया था। इसी वर्ष जनवरी से सितंबर के बीच मुंबई में तलाक के 8941 मामले सामने आए हैं। जुलाई से सितंबर माह के बीच ही तलाक के लिए 2932 आवेदन दर्ज किए गए हैं। युवा जल्दी लेते हैं तलाकमुंबई के एक फैमिली कोर्ट की काउंसलर माधवी देसाई ने बताया कि तलाक लेने वाले ज्यादातर दंपति युवा होते हैं। उनकी उम्र 30 साल से भी कम होती है और शादी को बमुश्किल एक साल भी पूरा नहीं होता है। क्रेटॉन यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर मैरिज एंड फैमिली की एक रिपोर्ट के अनुसार समय, पैसा और सेक्स ये तीन तलाक की मुख्य वजह हैं। इसके अलावा एक-दूसरे से ज्यादा अपेक्षाएं रखना, घर के कामकाज को लेकर होने वाली दिक्कत भी तलाक के अन्य कारण हैं।

दहेज की बलिवेदी पर चढ़ी नवविवाहिता

भास्कर न्यूज
कैथल लैंडरकीमा गांव में दहेज में मोटरसाइकिल की मांग पूरी न करने पर ससुरालवालों ने नवविवाहिता को फांसी देकर मार डाला। पुलिस ने विवाहिता के पति, सास व ससुर के खिलाफ दहेज हत्या का मामला दर्ज किया है। शव का पोस्टमार्टम कर परिजनों को सौंप दिया है।
धौलगढ़ जिला करनाल निवासी रोशनलाल ने बताया कि उसने अपनी बेटी सुदेश (२क्) की शादी मार्च, 2007 में लैंडरकीमा निवासी प्रवीन के साथ की थी। ससुरालवाले अक्सर उसे दहेज कम लाने के ताने देते थे। दहेज की मांग पूरी न करने पर ससुरालवालों ने उसे मोटरसाइकिल लाने की मांग को लेकर परेशान करना शुरू कर दिया।
सुदेश ने उन्हें फोन कर इस बारे में बताया। उन्होंने कुछ दिनों में मांग पूरी करने का आश्वासन भी दिया था। बुधवार सुबह चार बजे उन्हें ससुरालजनों ने फोन कर सूचना दी कि उनकी बेटी ने मकान में फांसी लगाकर जान दे दी है। सूचना पाकर वह मौजिज व्यक्तियों व सगे संबंधियों के साथ गांव लैंडरकीमा पहुंचा तो देखा उसकी बेटी का शव जमीन पर पड़ा हुआ था और उसके गले पर रस्सी के निशान थे। ससुरालवालों पर उसकी बेटी को फांसी देकर मारने का आरोप लगाया है। सदर थाना प्रभारी रामफल सिंह खटकड़ ने बताया कि पुलिस ने पति प्रवीन कुमार, ससुर मंगता राम व सास सोना देवी के खिलाफ दहेज हत्या का मामला दर्ज किया है। उधर, ससुरालपक्ष के प्रवीन व मंगता राम का कहना है सुदेश ने खुद ही फांसी लगाकर जान दी है।
दहेज के लिए सताने पर दो फंसे
दहेज के लिए विवाहिता को तंग करने व मारपीट करने पर पुलिस ने ससुरालपक्ष के दो लोगों पर दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज किया है। मामला दर्ज करने के आदेश कोर्ट ने दिए थे। पबनावा निवासी दर्शना ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है कि उसकी शादी दस वर्ष पूर्व सजूमा निवासी शमशेर के साथ हुई थी। ससुरालवालों ने उसे दहेज के लिए ताने मारने शुरू कर दिए व मांग पूरी न करने पर उससे मारपीट करने लगे। इससे दुखी होकर वह मायके लौट आई। पुलिस ने उसके पति शमशेर व जेठ जयनाथ के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

अंजलि को मिलेगा ‘अमेरिकी नागरिक सम्मान’

एजैंसी.
न्यूयॉर्क अमेरिका में भारतीय मूल की अंजलि भाटिया को विश्व में सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने के लिए नागरिक कूटनीति का राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। १९ साल की अंजलि को १२ फरवरी को वाशिंगटन में आयोजित होने वाले यूएस सेंटर फॉर सिटीजन डिप्लोमेसी के इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा।
सेंटर के श्री हेरियट मेयर फुलब्राइट ने कहा है कि यह हर अमेरिकी नागरिक का फर्ज है कि वे उच्च स्तर के नागरिक राजनयिक बनकर देश और समाज की सेवा करें। अंजलि ने तीन साल पहले अमेरिका और खांडा के बीच रिश्तों को बढ़ावा देने के लिए विद्यार्थियों द्वारा संचालित एक एनजीओ डिस्कवर वल्र्डस की स्थापना की थी। यह एचआईवी/एड्स पीड़ित युवाओं को शिक्षा से जोड़े रखने और अनाथ बच्चे, महिलाओं के सशक्तिकरण के जरिए गरीबी उन्मूलन के लिए काम करता है।

THE SILENT LOVER (i)


by: Sir Walter Raleigh (1552-1618)
ASSIONS are liken'd best to floods and streams:
The shallow murmur, but the deep are dumb;
So, when affection yields discourse, it seems
The bottom is but shallow whence they come.
They that are rich in words, in words discover
That they are poor in that which makes a lover।


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EVEN SUCH IS TIME

by: Sir Walter Raleigh

VEN such is time, that takes in trust
Our youth, our joys, our all we have,
And pays us but with earth and dust;
Who, in the dark and silent grave,
When we have wandered all our ways,
Shuts up the story of our days:
But from this earth, this grave, this dust,
My God shall raise me up, I trust।

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