शनिवार, 5 जुलाई 2008

महिला होने पर नरेगा के लाभ से वंचित ( अलोका एन. एफ. आई एवं ए. आई एफ फेलोसिप के तहत )

।निजीकरण के इस दौर में पूरे भारत में तेजी से बेरोजगारी बढ़ी है। इस बेरोजगारी ने भारत के हर प्रंात मे राजनीति, समाजिक, आर्थिक स्थिति को चरमरा दिया हैै। जिससे आने वाले भविष्य एवं ग्रामीण जनजीवन पर व्यापक असर पड़ा हैं हर क्षेत्र मे बेरोजगारी की भार से समूचित समाज की संरचना ही बदल गयी है। कही पलायन तो कही भूख से मौत कही लोग गरीबी और बेरोजगारी के कारण गांव ही बेच दे रहे हैं। इस वक्त भारत सरकार ने लोगो को राहत के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी कानून बना कर लोगो को राहत देने का काम किया। किन्तु यह कानून क्या महज कानून ही बन कर ही रह जाएगे। आजादी के बाद ग्रामीणों को साल ंमें 100 दिन के काम के अधिकार की महत्व उतनी हैं जीतना जीवन के लिए पानी। झारखण्ड में इस कानून का खास महत्व है। झारखण्ड एक ऐसा राज्य है। जहां प्राकृतिक संपदा सबसे ज्यादा होने के बावजूद यहा के लोगो को रोजगार का अभाव है। लूट खसोट की व्यवस्था ने पलायन करने पर मजबूर कर दिया है।इस कानून को लागू कराने के लिए दे’ा भर में अरूणा राय, ज्यां द्रेज ,निखिल डे नेतत्व में आंदोलन हुआ था जिसका परिणाम हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांंरटी कानून 2005, महाराष्टा में 1977 से लोगों को रोजगार के अधिकार व कानून बनने के बाद,ग्रामीण बेरोजगार अकु’ाल, नरेगा के साथ झारखण्ड राज्य में इस कानून को परिकल्पित की गई है। फरवरी 2006 को लागू होने के उपरान्त प्र’ाासन के कच्छप चाल से रोजगार के अधिकार से वंचित किये जाने लगी चाईबासा की ग्रामीण गरीब, बेरोजगार जनता।वही चाईबासा के गांव में इस कानून का पालन नही किया गया है। खुटपानी ब्लाक के उपर टोला,टोनटो ब्लाक के झीरजोर, कुईल सुटा,रूटागुटू सारजोम बुरू उडेलकम में रोजगार कार्ड के बारे में वहां के लोग नही जानते हैं। जबकि वह गांव आदिवासी क्षेत्र है। वहां कि 528 परिवार के लोग रह रहें उन्हे रोजगार की जरूरत हैं। इस गांव को आवेदन भराया नही गया हैं। ग्राम प्रधान इस गांव के लोगो को अलग कर के आवेदन दिया गया। समाजिक कार्याकत्र्ता ज्योत्सना तिर्की ने बताया कि वहां के ग्रामीणो को महिला होने के कारण अलग कर दिया हैं। जबकि उन परिवारों को रोजगार की जरूरत हैं। किस गांव में आवेदन भरा गया कि नही इसकी जानकारी या निरक्षण नही किया गया हैं। बल्कि नारेगा प’िचम सिंहभमू में कागजो पर चल रहें हैं। जिसके परिणाम हैं कि कई गांव में नारेगा कानून को लोग नही जान पायेे हैं। जबकि इस कानून को लोगो तक पहुंचाने का काम ग्राम प्रधान और ब्लाॅक पदाधिकारी के द्वारा जानकारी देना हैं वह भी नही हो रहा हैं।उन्होने बताया कि पंजीकरण के लिए पंचायत सेवक द्वारा एक लिस्ट जारी किया गया है। जिसमें तय कर दिया गया हैं कि किनको आवेदन करना हैं। ग्रामीण क्षेत्र में बहुत ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें वास्तव में रोजगार की आव’यकता हैं। 2 रूपये में आवेदन र्फाम बेचे जा रहे है। 25 से 45 रू0 में फोटो खिचाया जा रहा हैं नारेगा से एक नया व्यापार का जन्म हो रहो हैं।चाईबासा के सुदूर गांव मे केन्द्र सरकार द्वारा इस कानून के बारे में अखबार, रेडियों, दुरदर्’ान द्वारा जनता को जानकारी दी गयी हैंंं। चुंकि ब्लॅाक में कई प्रकार के योजनाएं चल रही हैं। यह पहला कानून हैं जिससे दे’ा में गरीबी और भूख से मौत को रोकने के लिए बनाया गया है। इसे बार- बार लोगो को अधिकार के प्रति सजग करने के लिए चेतन का विकास का प्रयास ब्लाॅक के द्वारा करना चाहिए। जिससे ब्लाॅक के अधिकारी निभा नही पा रहें। चाईबासा के टकराहातु, डिलियामार्चा गांव में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के बारे में जाॅब कार्ड की स्थिति का जायजा लेना तथा आवेदन करने पर हो रहे समस्या पर बात कि गर्यी। मालती वानरा ने बताया कि चाईबासा में रोजगार गारंटी कानून के तहत लोगो को सफेद कागज में आवेदन कर सकते हैं, आवेदन के बाद आवेदक को जाॅब कार्ड उपलब्ध किया जाएगा । जाॅब कार्ड मिलते ही रोजगार के लिए आवेदन करें जाॅब कार्ड में फोटो साटना तुरन्त जरूरी नही आप बाद में भी फोटो दे सकते है। आवेदन देना , फोटो खिचवाना तथा जाॅब कार्ड निः शुल्क में ग्राम सेवक द्वारा किया जाएगा तथा आप अपने जाॅब कार्ड द्वारा 15 दिन का काम दिया जाएगा इस कानून के तहत 100 दिन का रोजगार की व्यवस्था केन्द्र सरकार द्वारा किया गया है। किन्तु महिला संदर्भ केन्द्र के द्वारा किये गये निरक्षण से पाया गया कि चाईबासा में अल्पसंख्यक 47 परिवार को कार्ड की की प्राप्ति हुईै है। बाकी लोगों को अभी तक नही मिली है। बड़ी संख्या में गांव में लोगो को जाॅब कार्ड नही मिल पाया हैं कई गांव में तो किसी - किसी का फोटो जमा नही है। यह भी पाया गया कि दुसरे के जाॅब कार्ड में किसी और व्यक्ति का फोटो सटा हुआ है। गांव में पंचायत सेवक द्वारा लोगो को आवेदन करने की इजाज+त नही दे रहें हैं। कई तरह के गडबडी यहां हो रहे है। हमे चाहिए की हम एक जुट हो कर अपने अधिकार के लिए आंदोलन करे ताकि सरकारी पदाधिकारी को हम अपने अधिकार के प्रति चेतावनी दे सके हमारी ग्राम सभा में इतनी ताकत है कि हम किसी पदाधिकारी से हम अपना हक ले सके।

अलोका

1 टिप्पणी:

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: ने कहा…

न्ररेगा का उल्लेख गरीबी उन्मूलन के सन्दर्भ मे करना गलत होगा । नरेगा का सम्बन्ध भूख से तो हो सकता है । गरीबी दूर करने हेत और भी बहुत सी योजनाये है। और रही महिला होने की बात तो नरेगा मे कोई लैन्गिक भेद नही किया जाता ,क्यो कि भुगतान केलिये 'कार्य मापन 'नियम का प्रयोग होता है । जब दिहाडी मजदूरी से भुगतान होता तो पुरुश महिला का फ़र्क माना जा सकता था ;क्यो कि सामन्य्ता लोग यह मानते रहे हैकि महिलाये पुरुश से कम कार्य करती है ; जबकि मैने पाया है कि महि्लाये पुरुश से अधिक ही कार्य करती है ,चाहे वे र्‍ग़हणी हो ,श्रमिक हो या चाहे अध्ययनरत हो अथवा नौकरीपेशा हो । सामान्यता स्त्री पुरुष दोनो ही मज़दूरी करतेहै ।