सोमवार, 18 अगस्त 2008

झारखण्ड की पहली पडहा राजा मुक्ता होरों

अलोका

एन.एफ. आई और ए. आई एफ के तहत फेलोसिप के तहत शोध

झारखण्ड मे पंचायत चुनाव न होने से वहां पंचायती राज व्यवस्था का अस्तित्व खतरे में है। जहां पूरानी परंपरागत स्व’ाासन व्यवस्था की एक मजबूत कड़ी का नाम पड़हा व्यवस्था है। इस व्यवस्था के द्वारा मुक्ता होरो ने अपने जनस्वश्स्छ असं व्यवस्था के अन्तगर्त कई काम करते आ रही है। 14 गांव धीरे -धीरे विकास की प्रगति के पथ पर अग्रसर है। वही गांव से पूरे दुनिया को संदे’ा के रूप में राजधानी रांची से नजदीक बुण्डू ब्लाॅक के पानसकम गांव की महिला मुक्ता होरो लोकतंात्रिक प्रणाली की उपज है।
झारखण्ड की विभिन्न आदिवासी समुदायों के बीच आज भी अलग- अलग परम्परागत स्वा’ाासन व्यवस्था अस्तित्व में है। इन्हीं व्यवस्थाओं में पड़हा व्यवस्था प्रमुख है। 14 गांवो को मिला कर पड़हा का गठन किया जाता है। यानि हर गांव के ग्राम प्रधान को मिला कर पड़हा का चुनाव होता है। यह व्यवस्था मूलतः आदिवासी क्षेत्रों में होता है। पड़हा राजा पद पर वर्षो से पुरूषों का सत्ता कायम की है। किन्तु अब इस पद पर महिलाएं भी चुन कर आ रही है परम्परागत व्यवस्था को अधिक लोकतांत्रिक बनाने की दि’ाा में सकारात्मक है। पड़ाह सभा में प्रत्येक गांव के प्रत्येक पंचायत से दो लोग प्रतिनिधि ‘’ामिल होते है। गांव सभा सहमति के आधार पर प्रतिनिधियों का चयन करती है। उनका कार्यकाल 6 साल का होता है। परन्तु हर साल के ‘’ाुक्र में प्रत्येक प्रतिनिधि गांव सभा के सलाना सभा या जलसे के सामने अपने कार्य का व्यौरा रखते है।उसके आधार पर गांव सभा फैसला लेती है। सलाना जलसे में या बीच में किसी भी समय गांव सभा का विस्तार करने की हालत में संबंधित व्यक्ति की सदस्यता अपने- आप समाप्त मानी जाती हैं जहां क इस व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी का सवाल है। तैमारा पंचायत में महिलाओं को एक तिहाई बहुमत 12 साल पहले से प्राप्त है। वहां पड़हा राजा द्वारा खुले रूप से लोकतंत्र के सिद्वांतों का सम्मान किया जाता है। मुक्ता होरों के नेतृत्व वाले पड़हा सभा में गांव की समस्या सड़क, पानी जंगल, ’िाक्षा, स्वास्थ्य, विवाह, बाजार तथा युवा - युवतियों की समस्याओं पर चर्चा कर उनके समाधान व विकल्पों की जला’ा की जाती है। इसके अन्तगर्त तैमारा पंचायत के अन्तगर्त सभी गंाव कोनेगा, मुनीडीह, हुसरीहातू, लबगा, कोड़दा, हाॅंजेद, बेड़ा, पानसकम, आडाडीह, लोआहातू, तैमारा, और अन्य गांव है। इन गांव की कुल आबादी लगभग 16 हजार से अधिक है। इस पदर पर 5 सालों से कार्यरत्त मुक्ता होरो ने बताया कि ’िाक्षा के प्रति गांव वाले ज्यादा सचेत है। हर गांव में एक सरकारी स्कूल हे जिसमें सातवी कलास तक की पढ़ाई होती है। हर गांव का लगभग हर बच्चा स्कुुल जाता है। यदि एक बच्चा सप्ताह भर स्कूल नहीं जाने पर गांव में बैइक हो जाती है। गांव में मैट्रिक की पढ़ाई के बाद बुण्डू काॅलेज जाते है। आवगमन का साधन नही करने के कारण काॅलेज की पढ़ाई में कम लोग जाते है। पढ़ाई के बाद सरकारी नौकरी की आ’ाा है। खेती का स्थान पहले से ही बना हुआ है। जंगल की रक्षा प्रमुख रूप सेे किए जा रहे है। यह पूरा गांव मूख्यतः खेती और जंगल पर आधारित है। पहले की अपेक्षा जंगल की स्थिति में परिवत्र्तन आई है। अतः जंगल बचाने के लिए वि’ोष जोर दिया जा रहा है। जंगल के फल- फुल पत्ती, डाल, जड़ी, बुटी का उपयोग अपने जीवन में करते हैं। गांव की एक महिला बीड़ा मुण्डा ने कही जंगल का घनत्व कम हुआ है। लेकिन यदि इसे बचाया जाएगा तब हम पुर्णः पुराने जंगल की प्राप्ती कर सकते है। तैमारा के ग्रामीण तारालाल सिंह मुण्डा ने कहते हे। गांव सभा ने पड़हा राजा महिला को बनाने से गांव समाज में साकारत्मक परिवत्र्तन आया है। महिला महत्वपूर्ण पद पर आकर निर्णय लेती हे तब चुल्हा चैका से लेकर खेती- बारी और समाज के सभी लोग मूल रूप् से घ्यान दिया जाता है। उनके अनुसार स्वच्छ और स्वस्थ्य परिवार ही समाज के नव निर्माण में भाग ले सकता है। वह गांव में सरकारी योजना से लोगा लाभ नहीं उठा पा रहें हैं। गांव में एकता के बल पर ज्ञान और जानकारी बांट रहे है। दीप थोड़ा ही सही जलाने ने की को’िा’ा की जा रही है।

1 टिप्पणी:

Pawan Singh Rathore ने कहा…

आपका लेख बेहतरीन है और पूरी जानकारी समेटे हुए है, वर्तमान में अगर आपके पास तैमारा पंचायत की मुखिया प्रियंका देवी का फोन नंबर हो तो देने की कृपा करें. अाप journalistpsr@gmail.com पर नंबर दे सकते हैं.