बुधवार, 6 अगस्त 2008

नरेगा कानून और बेरोजगारी भत्ता (एन. एफ. आई. एवं ए. आई. एफ फेलो’िाप के तहत )

अलोका
झारखण्ड राज्य के अन्तर्गत हजारीबाग जिले के कटकम सांडी प्रखण्ड के लोग लगातार नवम्बर 2007 से नरेगा कानून के अन्तर्गत बेरोजगारी भत्ते की मांग कर रहे है। 04.02 .06 को जाॅब कार्ड दिया गया परन्तु उस जाॅब कार्ड में काम नहीं दिया गया है। कटकमसांडी के महिला पुरूष एवं गांव के तमाम लोगो ने उपायुक्त कार्यालय हजारीबाग में घरना दे कर बेरोजगारी भत्ते की मांग कर रहे है।

पूरी व्यवस्था इतनी अनसूनी हो गयी है कि बार-बार आवाज लगाने के बावजूद मजदूरों के साथ अन्याय रूक नही पाता है। नरेगा कानून के तहत फिर एक बार इस नये बेरोजगारी दूर करने के नाम पर 300 मजदूर नरेगा के तहत काम मांग रहे है। इस 300 मजदूर ने काम का आवेदन 2007 मे ही किये थे लेकिन गांव के लोगो को न काम मिला और न बेरोजगारी भत्ता फिर एक बार सरकार ने मजूदरों को अपने अधिकार देने से वंचित करता नजर आ रहे है। कानून का पालन नहीं हो पा रहा है जब सरकारी पदाधिकारी कानून का पालन नही कर सकते तब आम जनता से क्यों उम्मीद करते है?

झारखण्ड प्रदे’ा मूलतः आदिवासी दलित का क्षेत्र रहा है यहां श्रम की पूजा और अपने श्रम पर वि’वास करते है विगत 15 सालों में झारखण्ड के जल - जंगल और जमीन पर विदे’ाी कम्पनी के नि’ाानें पर है जंगल पानी के अभाव में पन्नप नही रहे है जिससे वायू प्रदूषण तेज होता जा रहा है पूराने बचे हुए जंगल पर व्यापारियों का कब्जा होता चला जा रहा है। वही जीमन के उत्पादन के घटने से भूखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जा रहीं है। उत्पादन का कम होना बेरोजगारी को बढ़ावा देते चले जा रहे है इस बेरोजगारी पलायन को बढ़ाव देती चली जा रही है। लेकिन बचे हुए कुछ गांव अपने श्रम के बल पर आज भी जीवित हैं। उस गांव में रहने वाले लोग आज भी बेरोजगारी है काम पाना चाहते है। नरेगा कानून उन किसानों के लिए खरा नही उतर पा रहा है जिनके किसानों के लिए रिन माफ करने का वादा किया हो।

गरीब सरकारी प्रक्रिया में लम्बे समय तक जुझता है। आखिर में तंग आकर पलायन करने की सोचते है। गरीबों के नाम पर बनने वाले कानून से गरीब लाभ नही उठा पा रहे है। जबकि अपने अधिकार को लागू करने उस अधिकार को पाने के लिए लम्बे समय से संघर्ष करना पड़ता है। जैसा की झारखण्ड के हजारीबाग मे हो रहे है। सरकार उन्हें न रोजगार मुहैया करा पा रही और न बेरोजगारी भत्ता ही दे पा रही है। बेरोजगारी भत्ते के मांग के लिए कटकमसांडी के गांव के लोग लगातार उपायुक्त कार्यालय के सामने घरना दे रहे है।

बेरोजगारी भत्ता पाने वाले चिन्तामन राम ने बताय कि हमारा अधिकां’ा समय सरकार के बनाए कार्यालय में घुमते - घुमते बीत जाता है वहीं सरकार की तमाम प्रक्रिया और विकास संबधी योजना प्रखण्ड कार्यालय आती है। प्रखण्ड कार्यालय के प्रधान पदाधिकारी अपनी मनमौजी करते है। वे पैसा से पैसा बनाना चाहते है जबकि कितने गरीब लोगों के परिवार आज भी 20 रू0 में अपने जीविका चला रहे। कितने परिवार आज भी एक ही समय चुल्हा जलते है हर दिन कमाने पर भोजन प्राप्त हो सकती है। आज भी मजदूरो के नाम पर छलावा है उसका खमियाजा मजदूर और किसान ही भूगते है। कारण कि अपने पेट के लिए इस ’ाहर से उस ’ाहर से मजदूरी करने जाते हैं जिससे एक रि’ता भी बन जाता है लोग आहिस्त से पहचाने लगते है और अपने अपने काम के अनुसार हमें बुलाते है सरकारी कानून, योजना इस रि’ते को तोड देता है। एक क्रम से अपना बना था टुट जाता है। बहुत कम समय हम सरकारी लाभ उठा पाते है।

सिलादेवी लुटा गांव की रहने वाली हैं। किसी के खेत में काम करके अपनी आजीविका चला रहे थे। इस कानून के आते ही गांव के ग्रामसभा के अघ्यक्ष के लोगो ने बिना बैठक कराए र्फाम भरकर ले गये और कहा कि इसके आधार पर अब सरकार सभी गांव वाले को काम देगी और यदि नही देगी तो बदले में बेरोजगारी भत्ता देगी। हम गांव वाले समेट लगभग 50 ंलोगो नेेे इकट्ठे काम का आवेदन दिया । आवेदन हमने 2007 में दिये हमें काम नही मिला करीब 15 दिनों के बाद हम लोगो ने बेरोजगारी भत्ते की मांग की उसके लिए डी डी सी, ब्लाॅक, कार्यालय, में चकर काटते- काटते 2008 हो गयें बेरोजगारी भत्ता नही मिला फिर हम लोगो ने उपायुक्त कार्यालय के समक्ष धरना देना ’ाुरू किये जिससे कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा है।

उधर भारतीय कम्युनिस्ट पाटी (माक्र्सवादी ) के जिला सांगठनिक कमिटि नरेगा में हो रहे गड़बड़ी को लेकर धरना दे रहे है। और लगातार यह मांग कर रही है कि बेरोजगारी भत्ता का बिना देर किये ग्रामीणों को दिया जाए तथा सभी जाॅबधारियों को काम दिया जाए इस मांग के साथ लगातार संघर्ष चल रहे है। सी पी आई (एम) के जिला सचिव गणे’ा कुमार बर्मा ने बताया कि नरेगा के द्वारा कटकमसांडी में लगातार गड़बडियां हो रही है। जिसकी जानकारी जिला के तमाम सरकारी पदाधिकारियों को है। इसके बावजूद मजूदरों को बेरोजगारी भत्ता नही दिया जा रहा है।

सी पी आई (एम) के जिला सचिव गणे’ा कुमार बर्मा ने कहा कि भारत सरकार द्वारा नरेगा कानून लागू करना@ करवाना जिला प्र’ाासन का परम कत्र्तव्य है। अपने पत्र में अपने प्रखण्ड विकास पदाधिकारी कटकमसांडी को पत्र का उल्लेख करते हुए बताए कि मजदूरों को सामूदायिक भवन में काम करने की जानकारी दी गयी परन्तु मजदूर काम करने नही आये। प्रखड विकास पदाधिकारी 03.10.07 को ये पत्र लिखते है। और मजूदरेां को लिखित सूचना 7.10.07 को दिया जाता है। इससे ये साफ प्रतीत होता हैं कि कानून के प्रावधानों का लाभ मजदूरों को न मिले इसलिए भ्रमक सूचना दिया। ऐसे भी इसका विरोध पार्टी नेे धरना के माघ्यम से उपायुक्त हजारीबाग के पास 90.10.07 को दर्ज करवाया है।

यदि प्रखण्ड विकास पदाधिकारी की बात को मान भी ले तो क्या बन रहे सामुदायिक भवन में 45 मजदूरों का विधिवत ( मजदूर को लगातार 14 दिन रोजगार सप्ताह में 6 दिन से अधिक नहीं) तरीके से कार्य दिया जाना संभव है? जाहिर है नही इसलिए ये मजदूर बेरोजगारी भत्ता पाने के योग्य है। क्या जहां समुदायिक नई भवन बनाया जा रहा है वहां मजदूरों के लिए नरेगा क तहत उपलब्ध सुविधाएं है? यदि सुविघाएं नही है तो मजदूर वहां काम करने क्यों जाएगी इसलिए भी मजदूरेां को बेरोजगारी भत्ता पाने के हकदार है। प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी का ये कहना है कि 12 मजदूर ’ाहर में काम करने जाते है और यह बात भी सत्य है 12 क्या 12 से ज्यादा मजूदर बाहर काम करते हैं वे लोग रोज कमाते और रोज खाते हैं

यदि एक दिन भी बैठ जाए तब उनका परिवार कैसे चलेगा गांव में रोजगार नही मिलेगा तो काम की तला’ा में ’ाहर तो जाएगे ही। नरेगा कानून का उदे्द’य ही है। पलायन रोकना और ग्रामीणों को उसके गांव में 5 कि0 मी0 के अन्दर काम उपलब्ध करवाना है। इन तमाम कारणों के साथ उपायुक्त को पत्र लिखे जा चुके किन्तु नरेगा के तहत किसी भी लोगों को बेरोजगारी भत्ता नहीं दिया गया है।

झारखण्ड में नरेगा फेल होने का बड़ा कारण पंचायत चुनाव का न होना लगता है। दुसरी ओर सरकार ने आदिवासी दलित समाज के परम्परागत सभा को मान्यता नहीं दी है। सरकारी पदाधिकारियों द्वारा ग्रामसभा का गठन किया जाता रहा है। उसके माघ्यम से नरेगा कानून को लागू करने में परे’ाानी हो रही है। जिससे लोगो को रोजगार नहीं मिल रहे है। ऐसी स्थिति में पलायन लाजमी है।






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