रविवार, 21 सितंबर 2008

पंचायत चुनावों में महिलाओं

aloka


देश में सम्पन्न हुए पंचायत चुनावों में महिलाओं ने जिस तरह पर्दा और चहारदीवारी से निकल कर बढ़-चढ़ कर भागीदारी निभाई है उससे यह तो साबित ही हो गया है कि महिलाएं भी अब अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं, उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है और नए साहस से लवरेज नजर आने लगी हैं। उनमें अपार ऊर्जा का संचार हुआ है। पंचायत चुनावों में चयनित महिलाएं अब पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना चाहती हैं। वे आत्मविश्वास के साथ अपने सभी कामों को स्वयं अपने बलबूते पर करना चाहती हैं। साथ ही वे अपने काम का आकलन भी जरूरी समझती हैं। आरक्षण की बिना पर ही महिलाएं पंचायत चुनावों में नए कीर्तिमान के साथ उभर कर आई हैं। यद्यपि प्रत्येक चुनाव की तरह ही इन चुनावों में भी धन की भूमिका काफी अहम रही फिर भी पैसे के अभाव में भी चुनाव जीतने के कीर्तिमान स्थापित हुए हैं। बिहार के कटिहार जिले के बलरामपुर ब्लाॅक में कीरोरा पंचायत में एक भिखारिन हलीमा खातून मुखिया निर्वाचित हो गई हैं। इसी प्रकार पूर्णिया जिले में भी चाय का ठेला लगाने वाली शांति देवी भी पंचायत सदस्य चुनी गई हैं।
पंचायत चुनावों में नवनिर्वाचित महिलाएं यद्यपि पूरी तरह से उर्जान्वित हैं अब देखना यह है कि रचनात्मक रूप में इस ऊर्जा का किस हद तक उपयोग हो पाता है; क्योंकि क्षेत्र पंचायत में काम करने के दौरान नई-नई कठिनाईयों एवं बाधाओं से जूझना पड़ेगा, और वे उन कठिनाइयों और बाधाओं से जूझने में किस हद तक सफल हो पाएंगी। और फिर उन हालातों में जब पंचायत चुनावों में निर्वाचित होकर जन सेवा करने का भाव गायब होता जा रहा हो और चैधराहट दिखाने की भावना बल पकड़ती जा रही हो।
ग्राम पंचायतों में ग्राम प्रधानों व सेक्रेेटरियों की पौ-बारह है। ग्राम पंचायतों में हो रही धांधलियों पर शिकायत के बावजूद मिलीभगत के चलते प्रशासन द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसकी वजह से ग्राम प्रधान सेक्रेटरी के साथ मिल कर अपनी मनमानी कर रहे हैं। देश की तमाम ग्राम पंचायतों से विधवा पेंशन, रोजगार गारंटी योजना के जाॅबकार्ड, मिड-डे मील वितरण तथा बीपीएल राशनकार्ड बनाने के तौरतरीकों में हो रही धांधलियों की शिकायत आने के बावजूद उनके निस्तारण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कुछ ऐसे संकेत मिले हैं कि तमाम जगह तो दंबगई और चैधराहट के चलते ग्राम प्रधान और सेक्रेटरियों की शिकायत करने का साहस तक नहीं जुटा पा रहे हैं। अगर कोई शिकायत करता भी है तो उनकी शिकायत को तरजीह देने के बजाय टरकाऊ लहजे से टाल दिया जाता है।
आज हमारा समाज एक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। लगभग 61 वर्’ाों के “ाांत सुगम परिवर्तन की प्रक्रिया के बाद महिलाओं को अपने गांव की पंचायत में मजबूती से खड़ा होने का मौका मिला है। जिससे समाज में गुणवत्ता परिवर्तन आया है। भारत के एक दो राज्य के छोड़ कर लगभग सभी राज्यों के पंचायतों में महिलाओं की भूमिका मजबूती के साथ बनती जा रही है। जिससे गांव के अन्दर स्वास्थ्य और ”िाक्षा में मजबूती से काम चल रहा है। जहां-जहां महिला पंचायत के रूप में चुनाव जीत कर आई, उस गांव के परिदृ”य बदलने लगा। हर गांव में सही क्षा का सवाल प्रमुखता से लिया जाने लगा है। समाज कल्याण, परिवार कल्याण और जन-स्वास्थ्य पर पंचायत जिम्मेवारी लेने लगी है।

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